क्या इस जहां में

क्या इस जहां में कोई ऐसा शहर नहीं,
जहां तारे ज़मीन को चूमते होंगे?

क्या इस जहां में कोई ऐसा शहर नहीं,
जहां गगन भी अपने मगन में झूमते होंगे?

क्या इस जहां में कोई ऐसा शहर नहीं,
जहां बादल आकर मिट्टी की गोद में छुपते होंगे?

क्या इस जहां में कोई ऐसा शहर नहीं, 
जहां पानी की अपनी मिठास होगी?

क्या इस जहां में कोई ऐसा शहर नहीं,
जहां नीला अम्बर रहता होगा?

क्या इस जहां में कोई ऐसा शहर नहीं,
जहां समंदर में आग नहीं, बल्कि लहरें जलती होंगी?

क्या इस जहां में कोई ऐसा शहर नहीं,
जहां पिंजरों से आजाद पक्षी अपने घर को जाते होंगे?

क्या इस जहां में कोई ऐसा शहर नहीं,
जहां लोग खुलकर मुस्कुराते होंगे?

क्या इस जहां में कोई ऐसा शहर नहीं,
जहां लोग झूठे रिश्ते नहीं बनाते होंगे?

क्या इस जहां में कोई ऐसा शहर नहीं,
जहां तारों भरा एक आसमान होगा?

क्या इस जहां में कोई ऐसा शहर नहीं,
जहां दीवानों सा एक शायर होगा?

क्या इस जहां में कोई ऐसा शहर नहीं,
जहां कलमों की अपनी भाषाएं होंगी?
- राधा माही सिंह 

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