समझ में नहीं आ रहा की जिंदगी कि शुरुवात करू कैसे? या फिर शुरू से शुरू करू कैसे? किसीने कहा था, कि जिंदगी में कुछ पाने के लिए कुछ खोना जरूरी है। मगर मैंने पाया क्या है,यह भी सवाल है? सिवाए खोने के अलावे,यह भी निराश है। गर मेरी अल्फाज़ यही ख़त्म हो जाता तो बेहतर है! मगर आसुओं को ख़त्म होने को क्या समझूं, यह भी उलझन है। बीती हुई रातो को क्या हुआ कुछ याद नहीं आ रहा है। मगर कल क्या होगा? यह चिंता आज सोने नही दे रहा है। पहलू जिंदगी की तो दो है। मगर आज तक शायद हमारी मुलाकात किसी एक से ही हुई हैं। खैर मसला यह नही है की शुरुआत कैसे करू या कहा से करू? मसलसल कोई साथ मिल जाता तो राहे आसान हो जाती है। यह बात आज कल मुझे अधूरा सा होने का हसास दिलाता है। -राधा माही सिंह