कि अब कुछ है ही नही है।
कुछ अधूरी सी बाते। कुछ हद तक राते। चुरा कर ले जाती है। और कुछ गलत फैमिया रिश्तों को भगा कर ले जाती है। कुछ सिल - सिला प्यार को साबित करता है। तो कुछ मुसलसल सब तबाह करने को ही आती है। आखों में लगी हर काजल सुर्ख वाली नही होती। कुछ काजल काले चोटों को छुपाने के लिए भी लगाई जाती है। किसी के साथ का मुलाकात कभी यह त्य नही करती। कि वो बात आखिरी हो। कभी - कभी हालत सब बता जाता है। हम चाहे कितना भी उम्मीद कर ले। मगर उम्मीद बस इतना समझता है। कि जिसकी तमन्ना लिया हम बैठे है। उस चांद के लिए कई ओर भी है जो हाथो पे कलेजा लिए घूमते है। मसला "कुछ बात या फिर कुछ हद की नही है।" कि बात कुछ ऐसी है। "कि अब कुछ है ही नही है।" -राधा माही सिंह